Short Stories In Hindi With moral

Best Hindi Story Collaction Short Stories In Hindi With moral for Kids

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Short Stories In Hindi With moral for Kids

आज के इस पोस्ट में 80 से ज्यादा Short Stories In Hindi With moral कलेक्शन बनाकर आपके साथ शेयर किया है किया है वह मैनेज करते हैं आपको यह सारी हिंदी शॉर्ट स्टोरीज आपको पसंद आएगी अगर यह हिंदी स्टोरीज आपको पसंद आती है आप अपनी बच्चों को जरूर सुने और उसे शिक्षा दें आपको यह हिंदी कहानियां कैसी लगी हमें कमेंट करके बताए


 

 नागरिक का फर्ज

एक बार की बात है चीन के महान दार्शनिक कन्फ्यूशियस अपने चेलो के साथ एक पहाड़ी से गुजर रहे थे । थोड़ी दूर चलने के बाद वो एक जगह अचानक रुक गये और कन्फ्यूशियस बोले ” कंही कोई रो रहा है ” वो आवाज को लक्ष्य करके उस और बढ़ने लगे । शिष्य भी पीछे हो लिए एक जगह उन्होंने देखा कि एक स्त्री रो रही है ।

कन्फ्यूशियस ने उसके रोने का कारण पूछा तो स्त्री ने कहा इसी स्थान पर उसके पुत्र को चीते ने मार डाला । इस पर कन्फ्यूशियस ने उस स्त्री से कहा तो तुम तो यंहा अकेली हो न तुम्हारा बाकि का परिवार कंहा है ? इस पर स्त्री ने जवाब दिया हमारा पूरा परिवार इसी पहाड़ी पर रहता था लेकिन अभी थोड़े दिन पहले ही मेरे पति और ससुर को भी इसी चीते ने मार दिया था । अब मेरा पुत्र और मैं यंहा रहते थे और आज चीते ने मेरे पुत्र को भी मार दिया ।

इस पर कन्फ्यूशियस हैरान हुए और बोले कि अगर ऐसा है तो तुम इस खतरनाक जगह को छोड़ क्यों नहीं देती । इस पर स्त्री ने कहा ” इसलिए नहीं छोडती क्योंकि कम से कम यंहा किसी अत्याचारी का शासन तो नहीं है ।” और चीते का अंत तो किसी न किसी दिन हो ही जायेगा ।

इस पर कन्फ्यूशियस ने अपने शिष्यों से कहा निश्चित ही यह स्त्री करूँणा और सहानुभूति की पात्र है लेकिन फिर भी एक महत्वपूरण सत्य से इसने हमे अवगत करवाया है कि एक बुरे शासक के राज्य में रहने से अच्छा है किसी जंगल या पहाड़ी पर ही रह लिया जाये । जबकि मैं तो कहूँगा एक समुचित व्यवस्था यह है कि जनता को चाहिए कि ऐसे बुरे शासक का जनता पूर्ण विरोध करें और सत्ताधारी को सुधरने के लिए मजबूर करे और हर एक नागरिक इसे अपना फर्ज़ समझे । stories in hindi


 चंचल मन

ये मन भी कितना चंचल है| प्रकाश की गति से भी तेज, बहुत तेज चलता है| या ये कहूँ कि दौड़ता है | इसकी चंचलता का क्या बखान करूँ, ये इस पल में तो मेरे साथ होता है और कहीं पलक झपकते ही, ये हजारों कोसों दूर किसी समुंदर में गोते लगाती मछलियों के साथ तैरता नज़र आता है| मैं कई बार इसे समझा बुझाकर वापस लेकर आती हूँ |

फिर भी मुझे बस यह एक झलक दिखाकर दोबारा धोका देकर निकल जाता है, फिर कहीं किसी दूसरी दुनिया की सैर करने के लिए| कभी ये आकाश में उड़ते परिंदे के साथ हवा के साथ अठखेलियां करता है, तो कभी हिमालय सी ऊंची पर्वत की चोटी पर खड़े होकर मुझे जीभ चिडाता नज़र आता है, कभी नेता के साथ खुद को किसी मंच पर भाषण देता हुआ गर्व महसूस करता है, तो कभी किसी फ़िल्मी कलाकार के साथ तस्वीर लेने के लिए उत्साहित होता नज़र आता है| वाकई यह मन कितना चंचल है | मना करते करते भी ना जाने कहाँ कहाँ चला जाता है|

बस इसी तरह दौड़ता हुआ आज यह मन एक छोटे से घर में जा पंहुचा | मैंने इस बार भी मना किया था इसे कि दूसरों के घरो में नहीं झाँका करते, पर इसने क्या आज तक मेरी सुनी थी जो ये आज सुनने वाला था | ये तो चल पड़ा था रोज की तरह अपने सुनहरे सफ़र की तलाश में, इसी चाह में कि शायद आज उसे इस घर से किसी के चूल्हे पर पकी मक्के की रोटी की सोंधी सी खुशुबू आ जाये|

पर ये क्या था आज तो ये दौड़ता हुआ सा मन अचानक इतना विचलित कैसे हो गया, क्यों दौड़ता दौड़ता ये अचानक थम सा गया| मैंने तो इसे आज इसे अभी वापस अपनी दुनिया में आने को टोका भी न था| न ही मैंने इसे इसकी गति को विराम लगाने का कोई आदेश दिया था| फिर क्या हुआ? अचानक इतना मायूस क्यों नज़र आने लगा?

ओह ! तो आज इसने जीवन की सच्चाई देख ली| शायद ये उस घर में रुक गया जिसमें एक छोटा सा बच्चा भूख से तिलमिलाता हुआ अपनी माँ की गोद में आकर बैठा है| उसकी माँ चाहती तो है कि वो एक पल में अपने दिल के टुकड़े को दूध का कटोरा लाकर कहीं से दे दे | लेकिन दूध तो क्या एक चावल का दाना भी तो न था उसके पास| ये मन आज गलत पते पर आ गया था शायद, मक्के की रोटी की सोंधी खुसबू सूंघने को|

उसे क्या पता था कि यहाँ मक्के की रोटी तो क्या एक मक्का का दाना भी न था। कुछ पल माँ ने अपने लाडले को समझाया और देखो माँ तो माँ होती है| उसकी प्यारी बातें उस भूख से लड़ते बच्चे को सब भूला देती हैं | एक पल तो ये सोचता है कि ऐसा क्या था जो अब ये रोता नहीं ? क्यों भूख से बिलखता नहीं? उसने उस नन्हे से बालक के मन को भी टटोलने का प्रयास किया |

पर ये क्या? ये तो इससे भी कहीं तेज गति से दौड़ रहा था | भला मेरा मन इस नन्हे बालक के मन से कहाँ कोई कांटेस्ट जीत सकता था| ये तो परियो से बातें कर रहा था, तो कही सौरमंडल के चारों ओर चक्कर लगा लगाकर अपने दोस्तों को चिड़ा रहा था| अरे ये क्या ये तो उन टिम टिम करते हुए तारों से बातें भी करने लगा है.| और इसके मन की गति का तो कोई तोड़ ही नहीं है |

एक पलक झपकते ही ये तो अन्तरिक्ष से सीधे समुंदर की गहराइयों तक भी पहुँच जाता है| देखो तो कैसे यह उस पांच पैर वाली अद्भुत मछली से आँख मिचोली खेलने लगा है | कितना खुश है ये तो | मेरे मन में हीनता की भावना आने लगी कि ये तो मुझसे भी ऊंची छलांगे लगाता है| ये तो मुझसे भी चोटी छोटी पर चढ़ जाता है|

लेकिन तभी अचानक ये क्या? इस नादान का मन तो किसी के घर में जाकर रुक गया | जहाँ इसके घर की तरह ही एक मिटटी का चूल्हा है| एक माँ है | और एक बेटा भी | यहाँ सब कुछ अपना सा है पर बस एक अन्तर है | यहाँ वो मिटटी के चूल्हे पर सिकती हुई मक्के की रोटी की सोंधी-सोंधी खुसबू आती है| और इस नन्हे से बालक का मन फिर से शांत, उदास और मायूस हो जाता है | और फिर मेरे मन का भी| अब इसका भी दौड़ने का मन नहीं करता, अब कही भी नहीं करता | stories in hindi for kids


 संतोष का धन

पंडित श्री रामनाथ शहर के बाहर अपनी पत्नी के साथ रहते थे | एक जब वो अपने विद्यार्थिओं को पढ़ाने के लिए जा रहे थे तो उनकी पत्नी ने उनसे सवाल किया ” कि आज घर में खाना कैसे बनेगा क्योंकि घर में केवल मात्र एक मुठी चावल भर ही है ?” पंडित जी ने पत्नी की और एक नजर से देखा फिर बिना किसी जवाब के वो घर से चल दिए |

शाम को वो जब वापिस लौट कर आये तो भोजन के समय थाली में कुछ उबले हुई चावल और पत्तियां देखी | यह देखकर उन्होंने अपनी पत्नी से कहा ” भद्रे ये स्वादिष्ट शाक जो है वो किस चीज़ से बना है ??” मेने जब सुबह आपके जाते समय आपसे भोजन के विषय में पूछा था तो आपकी दृष्टि इमली के पेड़ की तरफ गयी थी | मैंने उसी के पतों से यह शाक बनाया है | पंडित जी ने बड़ी निश्चितता के साथ कहा अगर इमली के पत्तो का शाक इतना स्वादिष्ट होता है फिर तो हमे चिंता करने की कोई आवश्यकता ही नहीं है अब तो हमे भोजन की कोई चिंता ही नहीं रही |

जब नगर के राजा को पंडित जी की गरीबी का पता चला तो राजा ने पंडित को नगर में आकर रहने का प्रस्ताव दिया किन्तु पंडित ने मना कर दिया | तो राजा हैरान हो गया और स्वयं जाकर उनकी कुटिया में उनसे मिलकर इसका कारण जानने की इच्छा हुई | राजा उनकी कुटिया में गया तो राजा ने काफी देर इधर उधर की बाते की लेकिन वो असमंजस में था कि अपनी बात किस तरह से पूछे लेकिन फिर उसने हिम्मत कर पंडित जी से पूछ ही लिया कि आपको किसी चीज़ का कोई अभाव तो नहीं है न ??

पंडित जी हसकर बोले यह तो मेरी पत्नी ही जाने इस पर राजा पत्नी की और आमुख हुए और उनसे वही सवाल किया तो पंडित जी की पत्नी ने जवाब दिया कि अभी मुझे किसी भी तरीके का अभाव नहीं है क्योंकि मेरे पहनने के वस्त्र इतने नहीं फटे कि वो पहने न जा सकते और पानी का मटका भी तनिक नहीं फूटा कि उसमे पानी नहीं आ सके और इसके बाद मेरे हाथों की चूडिया जब तक है मुझे किसी चीज़ का क्या अभाव हो सकता है ?? और फिर सीमित साधनों में भी संतोष की अनुभूति हो तो जीवन आनंदमय हो जाता है |

राजा बड़ी श्रद्धा से उस देवी के सामने झुक गये | stories in hindi for reading


साहूकार का बटुआ

एक बार एक ग्रामीण साहूकार का बटुआ खो गया। उसने घोषणा की कि जो भी उसका बटुआ लौटाएगा, उसे सौ रूपए का इनाम दिया जाएगा। बटुआ एक गरीब किसान के हाथ लगा था। उसमें एक हजार रूपए थे। किसान बहुत ईमानदार था। उसने साहूकार के पास जाकर बटुआ उसे लौटा दिया।

साहूकार ने बटुआ खोलकर पैसे गिने। उसमे पूरे एक हजार रूपये थे। अब किसान को इनाम के सौ रूपए देने मे साहूकार आगापीछा करने लगा। उसने किसान से कहा, “वाह! तू तो बड़ा होशियार निकला! इनाम की रकम तूने पहले ही निकाल ली।”

यह सुनकर किसान को बहुत गुस्सा आया। उसने साहूकार से पूछा, “सेठजी, आप कहना क्या चाहते हैं?”

साहूकार ने कहा, “मैं क्या कह रहा हूँ, तुम अच्छी तरह जानते हो। इस बटुए में ग्यारह सौ रूपए थे। पर अब इसमें केवल एक हजार रूपये ही हैं। इसका अर्थ यह हुआ कि इनाम के सौ रूपए तुमने इसमें से पहले ही निकाल लिये हैं।”

किसान ने कहा, “मैंने तुम्हारे बटुए में से एक पैसा भी नहीं निकाला है। चलो, सरपंच के पास चलते हैं, वहीं फैसला हो जाएगा।”

फिर वे दोनों सरपंच के पास गए। सरपंच ने उन दोनों की बातें सुनीं। उसे यह समझते देर नहीं लगी कि साहूकार बेईमानी कर रहा है।

सरपंच ने साहूकार से कहा, “आपको पूरा यकीन है कि बटुए में ग्यारह सौ रूपए थे?”
साहूकार ने कहा, “हाँ हाँ, मुझे पूरा यकीन है।”
सरपंच ने जवाब दिया, “तो फिर यह बटुआ आपका नहीं है।”
और सरपंच ने बटुआ उस गरीब किसान को दे दिया। stories in hindi for class 10

Moral Of Story -झूठ बोलने की भारी सजा भुगतनी पड़ती है। Short Stories In Hindi With moral


एकता का बल

एक किसान था। उसके पाँच बेटे थे। सभी बलवान और मेहनती थे। पर वे हमेशा आपस में लड़ते-झगड़ते रहते थे। किसान यह देख कर बहुत चिंतित रहा करता था। वह चाहता था कि उसके बेटे आपस में लड़ाई-झगड़ा न करें और मेलजोल से रहें। किसान ने अपने बेटों को बहुत समझाया और डाँटा-फटकारा भी, पर उनपर इसका कोई असर नहीं हुआ।

किसान को हमेशा यही चिंता सताती रहती कि वह अपने बेटों में एकता कैसे कायम करे! एक दिन उसे अपनी समस्या का एक उपाय सूझा। उसने अपने पाँचों बेटों को बुलाया। उन्हें लकडि़यों का एक गट्ठर दिखाकर उसने पूछाँ, “क्या तुममें से कोई इस गट्ठर को खोले बिना तोड़ सकता है?”

किसान के पाँचों बेटे बारी-बारी से आगे आए। उन्होंने खूब ताकत लगाई। पर उनमें से कोई भी लकडि़यों का गट्ठर तोड़ नही सका।
फिर किसान ने गट्ठर खोलकर लकडि़यों को अलग-अलग कर दिया। उसने अपने बेटों को एक-एक लकड़ी देकर उसे तोड़ने के लिए कहा। सभी लड़कों ने बहुत आसानी से अपनी-अपनी लकडी तोड़ डाली।

किसान ने कहा,”देखा! एक-एक लकड़ी को तोड़ना कितना आसान होता है। इन्हीं लकडि़यों को एक साथ गट्ठर में बाँध देने पर ये कितनी मजबूत हो जाती हैं। इसी तरह तुम लोग मिल-जुल कर एक साथ रहोगे, तो मजबूत बनोगे और लड़ झगड़कर अलग-अलग हो जाओगे, तो कमजोर बनोगे।”  stories in hindi for children

Moral Of Story -एकता में ही शक्ति है, फूट में ही है विनाश।


 हँसमुख सरदार

बहुत दिनों की बात है। एक बहादुर सरदार था। उसने अनेक लड़ाइयाँ लड़ी थीं और उनमें अपनी असाधारण वीरता का परिचय दिया था। वह एक मँजा हुआ तलवारबाज और कलाबाज घुड़सवार था। इतना ही नहीं, वह दिल का भी बहुत उदार था। वह सदा गरीबों और जरूरतमंद लोगों की सहायता किया करता था। असहाय लोगों की रक्षा करना वह अपना कर्तव्य समझता था। लोग उसे सच्चे दिल से प्यार करते थे। वे उसकी अच्छाइयों का गुणगान करते और उसका बहुत सम्मान करते थे।

पर इस सरदार के बारे में एक रहस्य की बात थी, जो किसी को मालूम नहीं थी। यहाँ तक की उसके घनिष्ठ मित्रों तक को भी इसका पता नहीं था। सरदार बिल्कुल गंजा था। अपने गंजेपन को छिपाने के लिए वह बालों की टोपी पहना करता था। यह टोपी उसके सिर पर इस प्रकार बैठ जाती थी कि उसके गंजेपन के बारे में किसी को रंचमात्र भी शंका नहीं होती थी।
एक बार सरदार अपने कुछ मित्रों के साथ जंगल में शिकार खेलने गया। वे अपने घोड़ों को सरपट दौड़ाते जा रहे थे कि तभी अकस्मात बड़े जोरो की आँधी आई और सरदार की बालों की टोपी उड़कर दूर जा गिरी। सरदार के गंजेपन का रहस्य खुल गया।

सरदार के मित्र उसकी गंजी खोपड़ी देखकर दंग रह गए। उन्हें सपने में भी यह ख्याल नहीं था कि उनका हँसमुख सरदार गंजा है। वे ठठाकर हँस पड़े। उन्होंने कहा, “वाह, आपका सिर तो अंडे़ की तरह सफाचट है। आप हमेशा अपने आप को जवान साबित करते रहे और हमें बेवकूफ बनाते रहे!”

“हाँ, मैं हमेशा अपना गंजापन छिपाने का प्रयास करता रहा। पर मुझे मालूम था कि एक दिन मेरा यह राज खुलकर रहेगा। जब मेरे अपने बालों ने मेरा साथ नहीं दिया तो दूसरों के बाल मेरे सिरपर सदा के लिए कैसे रह सकते हैं?” यह कहकर सरदार हो, हो करता हुआ खिलखिलाकर हँस पड़ा।

जब सरदार के मित्रों ने देखा कि वह स्वयं अपने आपपर हँस रहा है, तो वे उस पर हँसने के कारण बहुत शर्मिंदा हुए। उन्होंने सरदार से कहा, “सरदार, आप वाकई बहुत दिलदार हैं।” stories in hindi with moral

Moral Of Story -जो अपने पर हँस सकता है, वह कभी हँसी का पात्र नहीं बन सकता।


बाजीराव पेशवा और किसान

बाजीराव पेशवा मराठा-सेना के प्रधान सेनापति थे। एक बार वे अनेक लड़ाइयों मे विजय हासिल करके अपनी सेना सहित राजधानी लौट रहे थे। रास्ते में उन्होंने मालवा में अपनी सेना का पड़ाव डाला। बहुत दूर से चलते-चलते आ रहे उनके सैनिक थककर चूर हो गए थे। वे भूख-प्यास से व्याकुल थे और उनके पास खाने के लिए पर्याप्त सामग्री भी नहीं थी।
बाजीराव ने अपने एक सरदार को बुलाकर आदेश दिया, तुम अपने साथ सौ सैनिकों को लेकर जाओ और किसी खेत से फसल कटवाकर छावनी में ले आओ।

सरदार सेना की एक टुकड़ी लेकर गाँव की ओर चल पड़ा। रास्ते में उसे एक किसान दिखाई दिया। सरदार ने उससे कहा, देखो, तुम मुझे इस इलाके के सबसे बड़े खेतपर ले चलो। किसान उन्हें एक बहुत बड़े खेत के पास ले गया। सरदार ने सैनिकों को आदेश दिया, सारी फसल काट लो और अपने-अपने बोरों में भर लो।

यह सुनकर किसान चकरा गया। उसने हाथ जोड़कर कहा, महाराज, आप इस खेत की फसल न काटें। मैं आपको एक दूसरे खेतपर ले चलता हूँ। उस खेत की फसल पककर एकदम तैयार है।

सरदार और उसके सैनिक किसान के साथ दूसरे खेत की ओर चल पड़े। यह खेत वहाँ से कुछ मीलों की दूरी पर और बहुत छोटा था। किसान ने कहा, महाराज, आपको जितनी फसल चाहिए, इस खेत से कटवा लीजिए।

सरदार को किसान की इस हरकत पर बहुत गुस्सा आया। उसने किसान से पूछा, यह खेत तो बहुत छोटा हैं। फिर तुम हमें वहाँ से इतनी दूर क्यों ले आए?
किसान ने नम्रतापूर्वक उत्तर दिया, महाराज, नाराज मत होइए। वह खेत मेरा नहीं था। यह खेत मेरा है। इसीलिए मैं आपको यहाँ ले आया।

किसान के जवाब से सरदार का गुस्सा ठंड़ा हो गया। वह अनाज कटवाए बिना ही पेशवा के पास पहुँचा। उसने यह बात पेशवा को बताई। पेशवा को अपनी गलती का एहसास हो गया। वे सरदार के साथ स्वयं किसान के खेत पर गए। उन्होंने किसान को उसकी फसल के बदले ढेर सारी अशरफियाँ दीं और फसल कटवाकर छावनी पर ले आए। stories in hindi king

Moral Of Story -नम्रता का परिणाम हमेशा अच्छा होता है।

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