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चतुर चित्रकार
एक धनवान बुढि़या थी। एक बार उसने एक नामी चित्रकार से अपना चित्र बनाने के लिए कहा। चित्रकार ने उसका चित्र बनाने के लिए कई दिनों तक मेहनत की। जब चित्र बनकर तैयार हो गया, तो चित्रकार ने उस महिला को अपने स्टुडियो में चित्र देखने के लिए बुलावाया।
इससे बुढि़या बहुत खुश हुई। वह चित्र देखने के लिए चित्रकार के स्टुडियो पहुँची। वह अपने साथ अपने कुत्ते को भी ले आई थी। बुढि़या ने वह चित्र अपने कुत्ते को दिखाते हुए कहा, टामी डार्लिंग, देख तो, ये तेरी मालकिन हैं। पर कुत्ते ने उसमें कोई रूचि नहीं दिखाई।
धनवान बुढि़या ने चित्रकार की ओर मुड़ते हुए कहा,”मुझे नही चाहिए यह चित्र! मेरा चतुर कुत्ता तक चित्र में मुझे पहचान नहीं सका।”
चित्रकार बहुत व्यवहारकुशल और बुद्धिमान था। वह अमीरों की इस तरह की सनक से भलीभाँति परिचित था। उसने नम्रतापूर्वक कहा, “मैडम आप कल फिर आइए! कल मैं इसे इतना स्वाभाविक रूप दे दूँगा कि यह चित्र आपकी शक्ल-सूरत से हूबहू मिलता-जुलता बन जाएगा। फिर आपका टामी इसे देखकर दुम हिलाता हुआ इसे चाटने लगेगा।”
दूसरे दिन बुढि़या फिर अपने कुत्ते को लेकर चित्रकार के स्टुडि़यो पहुँची। कुत्ता चित्र को देखते ही अपनी दुम हिलाता हुआ दौड़कर उसके पास पहुँचा और उसे चाटने लगा।
बुढि़या यह देखकर पुलिकित हो उठी। उसने कहा, “वाह! कितना खूबसूरत चित्र बनाया है, आपने! मेरे टामी को यह पसंद आ गया है, इसलिए मुझे भी यह पसंद है। लाइए, इसे बाँधकर मुझे दे दीजिए। चित्रकार ने चित्र के लिए एक मोटी रकम की माँग की और महिला ने खुशी-खुशी पैसे अदा कर दिए।”
जब बुढि़या चित्र लेकर चली गई, तो चित्रकार को बहुत हँसी आई। उसने पहले वाले चित्र में कुछ भी नहीं बदला था। उसने उस चित्रपर केवल मसाले दार गोश्त का टुकड़ा लेकर रगड़ दिया था, बस। गोश्त की महक नाक में जाते ही कुत्ता चित्र को चाटने लगा था। stories in hindi interesting
Moral Of Story -सूझबूझ से वर्क लेने पर बिगड़ी बात भी सुधर जाती है।
बीरबल औैर बेईमान अधिकारी
एक दिन बादशाह अकबर के एक अधिकारी ने कड़ाके की ठंडी में एक गरीब आदमी से शर्त लगाई। उसने गरीब आदमी से कहा, “यदि तुम तालाब के ठंडे पानी में रातभर खड़े रहो, तो मैं तुम्हें पचास अशर्फियाँ दूँगा। गरीब आदमी को पैसे की बहुत जरूरत थी।” इसलिए उसने यह शर्त मान ली।
दूसरे दिन शाम को उस गरीब आदमी ने तलाब के पानी में प्रवेश किया और पूरी रात पानी में ठिठुरता हुआ खड़ा रहा। अधिकारी ने उस पर निगरानी रखने के लिए पहरेदारों को लगा दिया था। प्रातःकाल होने पर पहरेदारों ने अधिकारी को बताया कि बेचारा गरीब आदमी पूरी रात ठिठुरता हुआ तालाब के पानी में खड़ा रहा था। पर अधिकारी की नीयत में खोट थी। वह उस गरीब को पचास अशर्फियाँ देना नहीं चाहता था।
जब वह गरीब आदमी अपना इनाम पाने के लिए अधिकारी के पास पहुँचा, तो उसने उससे पूछा, “क्या तालाब के पास कोई दीपक जल रहा था?”
हाँ, सरकार, गरीब आदमी ने जवाब दिया।
“क्या तुमने उस दीपक की ओर देखा था?”अधिकारी ने पूछा।
“हाँ, सरकार, मैं रातभर उसी को देखता रहा।” गरीब आदमी ने कहा। “अच्छा, तो यह बात है!” अधिकारी ने कहा, “तुम रातभर तालाब के पानी में इसलिए खड़े रह सके, क्योंकि तुम्हें उस दीपक से गर्मी मिलती रही।इसलिए तुम्हें इनाम माँगने का कोई अधिकार नहीं है। भाग जाओ!” इस प्रकार अधिकारी ने उस गरीब को डाँटकर भगा दिया।
गरीब आदमी इससे बहुत दुःखी हुआ। वह सहायता के लिए बीरबल के पास पहुँचा। बीरबल ने बड़े ध्यान से उसकी बात सुनी। उन्होंने उसे ढाढ़स बँधाते हुए कहा,”चिंता मत करो मित्र। मैं तुम्हें न्याय अवश्य दिलाऊँगा।” बीरबल के आश्वासन पर वह अपने घर चला गया।
दूसरे दिन बीरबल दरबार में नहीं गए। अकबर ने बीरबल का पता लगाने के लिए अपने सेवकों को उनके घर भेजा। सेवकों ने वापस आकर बादशाह से कहा, “महराज, बीरबल ने कहा है कि वे खिचड़ी पकाने मे व्यस्त हैं। खिचड़ी पकते ही वे दरबार में हाजिर हो जाएँगे।”
काफी समय बीत गया, पर बीरबल नहीं आए। बादशाह ने बीरबल को बुलाने के लिए दूसरे सेवक भेजे। उन्होंने भी लौट का वही संदेश दिया, जो पहलेवालों ने दिया था।
बीरबल का विचित्र जवाब सुनकर बादशाह को बहुत आश्चर्य हुआ। वे स्वयं बीरबल के घर पहुँच गए। बीरबल के घर के अहाते का दृश्य देखकर बादशाह चकित रह गए। बीरबल ने जमीनपर आग जला रखी थी और तीन ऊँचे बाँसों पर एक मिट्टी की हँडि़या बँधी हुई थी।
बादशाह ने कहा, “बीरबल, यह क्या बेवकूफी है? जमीन पर जल रही आग की आँच इतने ऊपर टंगी हँडि़या तक कैसे पहुँच सकती है?”
बीरबल ने जवाब दिया, “महाराज, यदि तालाब के पानी में खड़ा आदमी तालाब के पास के दीपक से गर्मी प्राप्त कर सकता है, तो जमीनपर जल रही आग की आँच से ऊपर बँधी यह हँडि़या क्यों नहीं गर्मी पा सकती?”
बादशाह ने बीरबल से कहा, “बीरबल पहेलियाँ मत बुझाओ। साफ-साफ कहो बात क्या है?” तब बीरबल ने बादशाह को बताया कि किस तरह उनके अधिकारी ने एक गरीब आदमी से शर्त लगाई थी और अब इनाम देने से वह मुकर रहा है।
बादशाह अकबर ने तुरंत अधिकारी तथा गरीब आदमी को बुलाया। दोनों पक्षों की बात सुनकर बादशाह ने उस अधिकारी को आदेश दिया, “तुम शर्त हार गए हो! इसलिए इसी वक्त इस आदमी को पचास अशर्फियाँ दे दो।”
अधिकारी को बादशाह का आदेश मानना पड़ा। उसने गरीब आदमी को तुरंत पचास अशर्फियाँ दे दीं। उस गरीब आदमी ने बादशाह और बीरबल का लाख-लाख शुक्रिया अदा किया। the Birbal stories in hindi
Moral Of Story -जैसे को तैसा।
गड़ा खजाना
एक बूढ़ा किसान था। उसके तीन बेटे थे। तीनों ही जवान और हट्टे-कट्टे थे। पर वे बहुत ही आलसी थे। पिता की कमाई उड़ाने में उन्हें बड़ा मजा आता था। मेहनत करके पैसे कमाना उन्हें अच्छा नहीं लगता था।
एक दिन किसान ने अपने बेटों को बुलाकर कहा, “देखो, तुम लोगों के लिए मैंने अपने खेत में एक छोटा-मोटा खजाना गाड़ रखा है। तुम लोग खेत को खोद डालो और उस खजाने को निकालकर आपस में बाँट लो”,दूसरे दिन बड़े सबेरे उस किसान के तीनों लड़के कुदालियाँ लेकर खेत पर पहुँच गए और खुदाई शुरू कर दी। पर, उन्होंने खेत की एक-एक इंच जमीन खोद डाली। पर, उन्हें कहीं भी खजाना नही मिला।
अंत में निराश होकर वे पिता के पास पहुँचे। उन्होंने कहा, “पिताजी, हमने पूरा खेत खोद डाला, पर हमें कहीं भी खजाना नही मिला।” किसान ने जवाब दिया, “कोई बात नही! तुम लोगों ने खेत की बहुत अच्छी खुदाई कर दी है। अब मेरे साथ आओ, हम इसकी बोआई करें।”
बाप-बेटों ने मिलकर खूब लगन से खेत की बुआई की। संयोग से उस वर्ष बरसात भी समय पर और बहुत अच्छी हुई। खेत मे खूब पैदावार हुई। फसल पक जाने पर खेत की शोभा देखते ही बनती थी। तीनों बेटों ने बड़ेे गर्व से अपने पिता को लहलहाती फसल दिखाई।
किसान ने कहा, “वाह, क्या खूब फसल हुई है! यही है वह खजाना, जिसे मैं तुम लोग को सौंपना चाहता था। अगर तुम लोग इसी तरह कड़ी मेहनत करते रहोगे, तो ऐसा ही खजाना तुम्हें हर वर्ष मिलता रहेगा।” stories in hindi language
Moral Of Story -मेहनत का फल हमेशा मीठा होता है।
घुमक्कड़ अमीर
एक अमीर आदमी था। वह अक्सर देश-विदेश की यात्रा किया करता था। इसलिए वह अधिकतर घर से बाहर ही रहता था। जब कभी वह घर लौटकर आता, तो आसपास के युवकों को एकत्र करता और उन्हें अपनी यात्रा के चित्र-विचित्र अनुभवों के बारे में बताता।
अक्सर वह उन युवकों से पूछता!
क्या तुमने पेरिस का आयफेल टाॅवर देखा है?
क्या तुमने पिसा की झुकी हुई मीनार देखी है?
क्या तुमने आगरा का ताजमहल देखा है?
क्या तुमने दिल्ली की कुतुबमीनार देखी है?
वे लोग उसकी बातें सुनकर अवाक रह जाते!
हर बार उस घुमक्कड़ अमीर के सवालों के जवाब में युवकों के मुँह से यही निकलता, नहीं! यह सुनकर अमीर कहता, “तुम लोग घर छोड़कर बाहर कहीं गए ही नही। इसलिए तुम्हें जीवन का आनंद नहीं मिला।”
एक दिन युवकों ने उस अमीर आदमी से कहा, “क्या आप कभी शहर के कबाड़ी की दुकान पर गए हैं? चलिए,” घुमा लाते हैं आपको!
लड़के उसे लेकर कबाड़ी की दुकानपर पहुँचे। अमीर, कबाडी की दुकान देखकर दंग रह गया। उसने देखा कि कबाड़ी की दुकान उसके घर के कीमती समानों से भरी पड़ी है। उसने कहा, “अरे, मेरे घर की चीजें इस कबाडखाने में कैसे पहुँच गईं?
युवकों ने उसकी खिल्ली उड़ाते हुए कहा, “आप तो मुश्किल से अपने घर पर होते हैं। इसलिए आप अपने पुरखों की गाढ़ी कमाई की चीजें इसी तरह लुटाते जा रहे हैं।” stories in hindi jadui chakk
Moral Of Story -समुचित देखभाल न करने पर घर की संपत्ति जाते देर नहीं लगती।
कंजूस करोड़ीमल
करोड़ीमल नाम का एक कंजूस आदमी था। एक दिन वह नारियल खरीदने के लिए बाजार गया। उसने नारियलवाले से नारियल की कीमत पूछी।
चार रूपये का एक, नारियलवाले ने कहा।
चार रूपये! यह तो बहुत महँगा है। मैं तो तीन रूपये दूँगा।करोड़ीमल ने कहा।
नारियलवाले ने जवाब दिया, यहाँ तो नही, यहाँ से एक मील की दूरीपर आपको जरूर तीन रूपये में एक नारियल मिल जाएगा।
करोड़ीमल ने विचार किया, पैसा बहुत मेहनत से कमाया जाता है। मीलभर पैदल चल लेने पर कम-से-कम एक रूपये की तो बचत हो जाएगी।
वे पैदल चलते-चलते एक मील तक गए, तो वहाँ उन्हें एक नारियलवाले की दुकान दिखाई दी। उन्होंने दुकानदार से नारियल की कीमत पूछी।
दुकानदार ने कहा, तीन रूपये का एक।
करोड़ीमल ने कहा, यह तो बहुत ज्यादा है। मैं तो अधिक से अधिक दो रूपये दूँगा।
अगर तुम एक मील आगे चले जाओ, तो वहाँ तुम्हें दो रूपए में मिल जाएगा। दुकानदार ने कहा।
करोड़ीमल ने फिर विचार किया, पैसा बहुत मूल्यवान होता है। एक रूपया बचाने के लिए मीलश्र पैदल चलने में क्या हर्ज है?
वे फिर चलते-चलते एक मील चले गए। वहँा उन्हें नारियल की एक दुकान दिखाई दी। उन्होंने नारियलवाले से नारियल की कीमत पूछी।
दो रूपए का एक, नारियलवाले वाले ने जवाब दिया।
करोड़ीमल ने कहा, “एक नारियल के दो रूपये? यह तो बहुत अधिक है। मैं तो केवल एक रूपए दूँगा।”
तो फिर एक वर्क करो, नारियलवाले ने कहा, “तुम समुद्र के किनारे-किनारे एक मील तक चलते जाओ। वहाँ नारियल की कई दुकानें है। तुम्हें एक रूपए में ही नारियल मिल जाएगा वहाँ।”
करोड़ीमल ने फिर विचार किया, “एक रूपया बचाने के लिए एक मील चल लेने में क्या हर्ज है? पैसा बहुत मूल्यवान होता है!”
करोड़ीमल वहाँ से चलते-चलते एक मील दूर समुद्र-तट पर पहुँच गए। वहाँ नारियलवालों की कई दुकाने थीं। करोड़ीमल ने एक दुकानदार से नारियल की कीमत पूछी।
दुकानदार ने कहा, “एक रूपए का एक नारियल।”
करोड़ीमल ने कहा, “एक रूपया! मैं तो इसके पचास पैसे दूँगा।”
नारियलवाले ने कहा, “तो फिर सामनेवाले नारियल के पेड़ पर चढ़ जाओ और तोड़ लो जितने चाहिए उतने। तुम्हारा एक पैसा भी खर्च नहीं होगा।”
हाँ यही ठीक रहेगा। करोड़ीमल ने कहा और देखते-ही-देखते वे एक नारियल के पेड़ पर चढ़ गए। उन्होंने अपने दोनों हाथों से एक नारियल पकड़ा और उसे जोर का झटका दिया। नारियल तो टूट गया, पर साथ-ही-साथ पेड़ से उनके पैर की पकड़ भी छूट गयी। फिर क्या था, करोड़ीमल नारियल सहित समुद्र की रेत पर आ गिरे। उनके पैर की हड्डी टूट गई और शरीर पर भी कई जगह खरोंचें आ गईं। एक नारियल के लिए करोड़ीमल को सिर्फ इतनी ही कीमत अदा करनी पड़ी! ghost stories in hindi i am rocker
Moral Of Story -लालच बुरी बला है।
बुद्धिचंद की बुद्धि का चमत्कार
बुद्धिचंद नाम का एक आदमी था। उसके पड़ोस में लक्ष्मीनंदन नाम का एक आदमी रहता था। बुद्धिचंद ने अपनी बेटी की शादी के लिए लक्ष्मीनंदन से एक हजार रूपये उधार लिए थे। उसकी बेटी की शादी हो जाने के बाद लक्ष्मीनंदन ने बुद्धिचंद से अपने पैसे वापस माँगे।
बुद्धिचंद ने कहा, सेठजी, मैं आपका एक-एक पैसा चुकता कर दूँगा! मुझे थोड़ा समय दीजिए।
लक्ष्मीनंदन ने कहा, “मेरा ख्याल था कि तुम एक ईमानदार आदमी हो! पर अब पता चला कि यह मेरी भूल थी।”
बुद्धिचंद ने कहा, “सेठजी, धीरज रखिए! मैं आपका कर्ज अवश्य चुका दूँगा। मैं बेईमान नहीं हूँ।”
“अगर तुम बेईमान नहीं हो, तो मेरे साथ अदालत में चलो। वहाँ न्यायाधीश के सामने लिखकर कर दो कि तुमने कर्ज के बदले में अपना मकान मेरे पास गिरवी रखा है।”
बुद्धिचंद ने कहा, “सेठजी, अदालत चलने की क्या जरूरत है? मुझ पर विश्वास रखिए। मैं आपका पैसा जल्द से जल्द लौटा दूँगा।” पर लक्ष्मीनंदन ने बुद्धिचंद की एक न सुनी। वह अपनी इस जिदपर अड़ा रहा कि बुद्धिचंद अदालत चलकर दस्तावेज पर हस्ताक्षर कर दे। वास्तव में लक्ष्मीनंदन बुद्धिचंद के मकान को हड़पना चाहता था।
बुद्धिचंद लक्ष्मीनंदन के मन की बात ताड़ गया। उसने लक्ष्मीनंदन से कहा, “मैं अदालत चलने के लिए तैयार हूँ। पर वह चलने के लिए मेरे पास ना तो घोड़ा है और न
सेठ ने बीच ही में उसकी बात काटकर कहा,
तुम तैयार हो जाओ, “मैं तुम्हें अपना घोड़ा दे दूँगा।”
“पर मेरे पास अच्छे कपड़े भी नहीं हैं।” बुद्धिचंद ने कहा।
“चलो, मैं तुम्हें अपने कपड़े भी दे दूँगा।” लक्ष्मीनंदन ने कहा।
“मगर मैं पगड़ी की व्यवस्था कहाँ से करूँगा?” बुद्धिचंद ने कहा।
“वह भी मैं तुम्हें दे दूँगा। और कुछ चाहिए?” लक्ष्मीनंदन ने कहा।
सेठजी, “मेरे पास तो जूते भी नहीं हैं!” बुद्धिचंद ने कहा।
“मैं तुम्हे अपने जूते भी दे दूँगा।” मगर अब देर मत करो! झटपट तैयार हो जाओ। लक्ष्मीनंदन ने मन-ही-मन खश होते हुए कहा।
बुद्धिचंद ने लक्ष्मीनंदन की पोषाक पहन ली। सिर पर पगड़ी और पैरों में उसके जूते पहन लिये। वह लक्ष्मीनंदन के घोड़ेपर सवार होकर उसके साथ अदालत जाने के लिए चल पड़ा।
जब अदालत में बुद्धिचंद का नाम पुकारा गया, तो वह न्यायाधीश के सामने हाजिर हुआ। उसने नयायाधीश से कहा, श्रीमान, सेठ लक्ष्मीनंदन का कहना है कि मेरा मकान और मेरे घर की सारी चीजें इनकी हैं। इसके लिए ये हमेशा मुझसे झगड़ा करते रहते हैं। मुझे सेठ जी जबरन अदालत में लेकर आए हैं। श्रीमान, कृपया आप मुझे इनसे कुछ सवाल पूछने की इजाजत दे।” न्यायाधीश ने लक्ष्मीनंदन को बुलावाया और उसे बुद्धिचंद के सवालों का जवाब देने का आदेश दिया।
बुद्धिचंद ने लक्ष्मीनंदन से पूछा, “मेरे सिर पर बँधी पगड़ी किसकी है?” लक्ष्मीनंदन ने कहा, “मेरी है!”
“मैंने जो कपड़े पहने रखे हैं, वे किसके हैं?” बुद्धिचंद ने पूछा।
“मेरे हैं, और किसकी?” लक्ष्मीनंदन ने कहा।
“और मेरे पैरों में जो जूते हैं, वे किसके हैं?” बुद्धिचंद ने पूछा।
“जूते भी मेरे ही हैं।” लक्ष्मीनंदन ने चीखते हुए कहा।
“और जिस घोड़ेपर सवार होकर मैं यहाँ कचहरी आया हूँ, वह घोड़ा किसका है?” बुद्धिचंद ने पूछा।
“वह घोड़ा भी तो मेरा ही है,” लक्ष्मी नंदन ने ऊँची अवाज में कहा, पगड़ी,
“घोड़ा, जूते, कपड़े,सब मेरे हैं।”
अदालत में मौजूद सभी लोग लक्ष्मीनंदन का जवाब सुनकर ठठाकर हँसने लगे।हर किसी को लगा कि लक्ष्मीनंदन पागल हो गया है। अंत में न्यायाधीश ने मुकदमा खारिज कर दिया।
बुद्धिचंद ने अपनी बुद्धि से अदालत में लक्ष्मीनंदन को हँसी का पात्र
साबित कर दिया। इस तरह उसने लक्ष्मीनंदन के षड्यंत्र को विफल कर दिया। moral stories in hindi jadui
Moral Of Story -धूर्त के साथ धूर्तता से ही पेश आना चाहिए। Short Stories In Hindi With moral
सच्चा मित्र
एक दिन सुबह-सुबह दो मित्र समुद्र में नौका-विहार करने निकले। वे शांत समुद्र में नाव खेते और गपशप करते हुए जा रहे थे। देखते-ही-देखते वे किनारे से बहुत दूर गहरे समुद्र में जा पहुँचे।
तभी एकाएक आसमान में काले-काले बादल घिर आए। तूफानी हवाएँ चलने लगीं। समुद्र में ऊँची-ऊँची लहरें उठने लगीं। उनकी नाव लहरों के साथ हिचकोले खाने लगी। अब मृत्यु उनकी आँखों के सामने नाचने लगी। इतने में सौभाग्य से उन्हें पास ही तैरता हुआ लकड़ी का एक पल्ला दिखाई पड़ा। डूबतों को जैसे तिनके का सहारा मिल गया। दोनों मित्रों ने झटपट नाव से छलाँग लगाई और तैरते-तैरते उस पल्ले को पकड़ लिया। पर पल्ला बहुत ही हल्का था। वह दोनों का भार वहन नहीं कर सकता था।
तब एक मित्र ने दूसरे मित्र से कहा,”देखो भाई, तुम शादीशुदा हो। तुम्हारी पत्नी है, बच्चे हैं। उनके लिए तुम्हारा जिंदा रहना ज्यादा जरूरी है। मैं ठहरा अकेला। इसलिए मैं मर भी गया, तो कोई हर्ज नहीं!”
शादीशुदा मित्र ने जवाब दिया, “नही भाई, तुम्हारी माँ है, बहन है! अगर तुम मर गए, तो उनकी देखरेख कौन करेगा?”
“उनकी देखरेख का जिम्मा अब मैं तुम पर डालकर जा रहा हूँ।” कहते हुए पहले मित्र ने पल्ला छोड़ दिया। वह समुद्र में डूबकर मर गया।
शादीशुदा युवक पल्ले के सहारे तैरते-तैरते किसी तरह किनारे आ लगा। उसकी जान बच गई। वह सकुशल घर पहुँच गया। उसने अपने दिवंगत दोस्त की माँ और बहन की जिंदगी भर परवरिश की। moral stories in hindi kahaniyan
Moral Of Story -सच्चे मित्र एक दूसरे के सुख दुख मे सहभागी होते है।
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