Table of Contents
खरगोश और उसके मित्र
एक खरगोश था। उसके अनेक मित्र थे। वह हमेशा अपने मित्रों से मिलता और उनके साथ गपशप भी करता। हौके-मौके वह उनकी मद्द भी करता। मगर एक दिन खरगोश खुद संकट में पड़ गया। कुछ शिकारी कुत्ते उसका पीछा करने लगे। यह देखकर खरगोश जान बचाने के लिए सरपट भागने लगा।
भागते-भागते खरगोश का दम फूलने लगा। वह थककर चूर हो गया। मौका देखकर वह एक घनी झाड़ी में घुस गया और वहीं छिपकर बैठ गया। पर उसे यह ड़र सता रहा था कि कुत्ते किसी भी क्षण वहाँ आ पहुँचेंगे और सूँघते-सूँघते उसे ढूँढ़ निकालेंगे। वह समझ गया कि यदि समय पर उसका कोई मित्र न पहुँच सका, तो उसकी मृत्यु निश्चित है।
तभी उसकी नजर अपने मित्र घोड़े पर पड़ी। वह रास्ते पर तेजी से दौड़ता हुआ जा रहा था।
खरगोश नें घोड़े को बुलाया तो घोड़ा रुक गया। उसने घोड़े से प्रार्थना की, “घोड़े भाई, कुछ शिकारी कुत्ते मेरे पीछे पड़े हुए हैं। कृपया मुझे अपनी पीठ पर बिठा लो और कहीं दूर ले चलो। अन्यथा ये शिकारी कुत्ते मुझे मार ड़ालेगे।
घोड़े नें कहा, “प्यारे भाई! मैं तुम्हारी मद्द तो जरुर करता, पर इस समय मैं बहुत जल्दी में हूँ। वह देखो तुम्हारा मित्र बैल इधर ही आ रहा है। तुम उससे कहो। वह जरुर तुम्हारी मद्द करेगा।” यह कहकर घोड़ा तेजी से सरपट दौड़ता हुआ चला गया।
खरगोश ने बैल से प्रार्थना की, “बैल दादा, कुछ शिकारी कुत्ते मेरा पीछा कर रहे हैं। कृपया आप मुझे अपनी पीठ पर बिठा ले और कहीं दूर ले चले। नहीं तो कुत्ते मुझे मार ड़ालेंगें।”
बैल ने जवाब दिया,”भाई खरगोश! मैं तुम्हारी मद्द जरुर करता। पर इस समय मेरे कुछ दोस्त बड़ी बेचैनी से मेरा इंतजार कर रहे होंगे। इसलिए मुझे वहाँ जल्दी पहुँचना है। देखो, तुम्हारा मित्र बकरा इधर ही आ रहा है। उससे कहो, वह जरुर तुम्हारी मद्द करेगा। यह कहकर बैल भी चला गया।”
खरगोश ने बकरे से विनती की, “बकरे चाचा, कुछ शिकारी कुत्ते मेरा पीछा कर रहे हैं। तुम मुझें अपनी पीठ पर बिठाकर कहीं दूर ले चलो, तो मेरे प्राण बच जाएँगे। वरना वे मुझे मार ड़ालेंगे।”
बकरे ने कहा, “बेटा, मैं तुम्हें अपनी पीठ पर दूर तो ले जाऊँ, पर मेरी पीठ खुरदरी है। उस पर बैठने से तुम्हारे कोमल शरीर को बहूत तकलीफ होगी। मगर चिंता न करो। देखो, तुम्हारी दोस्त भेड़ इधर ही आ रही है। उससे कहोगे तो वह जरुर तुम्हारी मद्द करेगी।” यह कहकर बकरा भी चलता बना।
खरगोश ने भेड़ से भी मद्द की याचना की, पर उसने भी खरगोश से बहाना करके अपना पिंड़ छुड़ा लिया।
इस तरह खरगोश के अनेक पुराने मित्र वहाँ से गुजरे। खरगोश ने सभी से मद्द करने की प्रार्थना की, पर किसी ने उसकी मद्द नहीं की। सभी कोई न कोई बहाना कर चलते बने। खरगोश के सभी मित्रो ने उसे उसके भाग्य के भरोसे छोड़ दिया।
खरगोश ने मन-ही-मन कहा, अच्छे दिनों में मेरे अनेक मित्र थे। पर आज संकट के समय कोई मित्र वर्क नहीं आया। मेरे सभी मित्र केवल अच्छे दिन के ही साथी थे।
थोड़ी देर में शिकारी कुत्ते आ पहुँचे। उन्होंने बेचारे खरगोश को मार ड़ाला। अफसोस की बात है कि इतने सारे मित्र होते हुए भी खरगोश बेमौत मारा गया। stories in hindi class 4
Moral Of Story -स्वार्थी मित्र पर विश्वास करने से सर्वनाश ही होता है।
चुहिया की बेटी का विवाह
एक चुहिया को एक सुंदर कन्या थी। वह अपनी बेटी का विवाह सबसे शक्तिशाली व्यक्ति से करना चाहती थी। बहुत सोच-विचार करने पर उसे लगा कि भगवान सूर्य उसकी कन्या के लिए उपयुक्त वर साबित होंगे।
चुहिया सूर्य भगवान के पास गई। उसने कहा, “सूर्य देवता, क्या आप मेरी सुंदर कन्या से विवाह करेगें? क्या उसे आप अपनी पत्नी के रूप में पसंद करेगें?”
सूर्य भगवान ने कहा,चुहिया चाची, आपने मुझे अपनी बेटी के योग्य वर समझा, इसके लिए मैं आपका आभारी हूँ। पर मैं सबसे ज्यादा शक्तिशाली नहीं हूँ। मुझसे शक्तिशाली तो वरूण देवता हैं। वे अपने बादलों से मुझे ढक देते हैं।”
अतः चुहिया जल के देवता के पास गई और बोली,”वरूण देवता, क्या आप मेरी सुंदर कन्या से विवाह करेंगे? क्या उसे आप अपनी पत्नी के रूप में अपनाएँगे?”
वरूण देवता ने जवाब दिया, देखो देवी, आपने मुझे अपनी बेटी के योग्य वर समझा, इसके लिए मैं आपका बहुत आभारी हूँ। पर मैं सबसे ज्यादा शक्तिशाली नहीं हूँ। मुझसे अधिक शक्तिशाली तो वायु देवता हैं। वे मेरे बादलों को दूर-दूर तक उड़ा ले जाते हैं।”
इसलिए चुहिया चाची वायु देवता के पास गई और कहने लगी, “वायु देवता, क्या आप मेरी सुन्दर कन्या से विवाह करेंगे? क्या आप मेरी बेटी को अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार करेंगे?” वायु देवता ने कहा, “चाची आपने मुझे अपनी बेटी के योग्य वर समझा, इसके लिए मैं आपका बहुत आभारी हूँ। पर मैं सबसे ज्यादा शक्तिशाली नहीं हूँ। मुझसे अधिक शक्तिशाली तो पर्वतराज हैं। वे मेरे मार्ग में खड़े हो जाते हैं और मुझे रोक देते हैं। मैं चाहे कितनी ही ताकत लगाऊँ पर पर्वतराज को अपने रास्ते से नहीं हटा पाता।
तब चुहिया चाची पर्वतराज के पास गई उनसे बोली, पर्वतराज, “क्या आप मेरी सुन्दर कन्या से विवाह करेंगे? क्या आप मेरी बेटी को अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार करेंगे?” पर्वतराज ने कहा, “चाची, आपने मुझे अपनी बेटी के योग्य वर समझा, इसके लिए मैं आपका बहुत आभारी हूँ। पर मैं सबसे अधिक शक्तिशाली नहीं हूँ। मुझसे ज्यादा शक्तिशाली तो जो मूषकराज(चूहों के राजा) हैं। वे और उनके साथी मेरे चट्टानी शरीर में बड़े-बड़े बिल खोदकर मुझे खोखला कर ड़ालते हैं।
अंत में चुहिया चाची मूषकराज के पास गई और बोली, “मूषकराज, क्या आप मेरी सुन्दर बेटी से विवाह करेंगे? क्या आप उसे अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार करेंगे?”
मूषकराज यह सुनकर बहुत प्रसन्न हुए। उन्होंने कहा,”हाँ, मैं आपकी बेटी से अवश्य विवाह करूँगा।
तब गाजे-बाजे के साथ धूमधाम से चुहिया की बेटी और मूषकराज का विवाह संपन्न हुआ।” stories in hindi class 10
Moral Of Story -दूर के ढ़ोल सुहावने लगते हैं।
न्यायी राजा
राजा विक्रम अपनी न्यायप्रियता के लिए प्रसिद्ध थे। एक बार वे अपने लिए एक शानदार राजमहल बनवा रहे थे। राजमहल का नक्शा तैयार हो चुका था। पर एक समस्या आड़े आ रही थी। राजमहल के निर्माण-स्थान के पास ही एक झोपड़ी थी। इस झोपड़ी के कारण राजमहल की शोभा नष्ट हो रही थी।
राजा ने झोपड़ी के मालिक को बुलवाया। उन्होंने अपनी समस्या के बारे में झोपड़ी के मालिक को बताया और झोपड़ी के बदले मोटी रकम देने का प्रस्ताव उसके सामने रखा। पर झोपड़ी का मालिक बहुत अडि़यल था। उसने राजा से कहा, “महाराज, माफ करें, आपका प्रस्ताव मुझे मंजूर नहीं है। अपनी झोपड़ी मुझे जान से भी ज्यादा प्यारी है। इसी झोपड़ी में मेरा जन्म हुआ था। मेरी पूरी उम्र इसी में गुजर गई। मैं अपनी इसी झोपड़ी में मरना भी चाहता हूँ।”
राजा ने सोचा, इस गरीब के साथ ज्यादती करना उचित नहीं है। उसने अपने मंत्री से कहा, “कोई हर्ज नहीं! इस झोपड़ी को यहीं रहने दो। जब लोग इस शानदार महल को देखेंगे, तो वे मेरे सौंदर्यबोध की सराहना अवश्य करेंगे। जब वे राजमहल के समीप इस झोपड़ी को देखेंगे, तो मेरी न्यायप्रियता की भी तारीफ करेंगें।” stories in hindi class 3
Moral Of Story -जियो और जीने दो
सुगंध और खनखनाहट
एक गरीब मजदूर था। वह खेतो में वर्क करता था एक दिन शााम को वह अपना वर्क खत्म करके। घर लौट रहा था रास्ते के किनारे मिठाई की एक दुकान थी। मिठाईयो की मीठी मीठी सुगंध रास्ते भर आ रही थी। इससे मजदूर के मुह में पानी आ गया। वह दुकान के पास गया। कुछ देर वहाँ खड़ा रहा उसके पास थोड़े पैसे थे। पर वे मिठाई खरीदने के लिये काफी नही थे। वह खाली हाथ लौटने लगा तभी उसे दुकनदार की कर्कश आवाज सुनाई दी। “रूको! पैसे तो देते जाओ।”
पैसे ? काहे के पैसे? मजदूर ने पूछा?
मिठाई के और काहे के! दुकनदार ने कहा,
“पर मैने तो मिठाई खाई नही! उसने जवाब दिया।
“लेकिन तुमने मिठाई की सुगंध तो ली है न!” दुकनदार ने कहा, “सुगंध लेना मिठाई खाने के बराबर है।”
बेचारा मजदूर घबरा गया। वहाँ खड़ा एक होशियार आदमी यह सुन रहा था। उसने मजदूर को अपने पास बुलाया उसके कान में फुसफुसाकर कुछ कहा। उस आदमी की बात सुनकर मजदूर का चेहरा खिल उठा वह दुकनदार के पास गया और अपनी जेब के पैसे खनखनाने लगा पैसो की खनखनाहट सुनकर दुकनदार खुश हो गया। चलो निकालो पैसे। मजदूर ने कहा, “पैसे तो मैने चुकता कर दिए”
दुकनदार ने कहा, “अरे तुमने पैसे कब दिए?”
मजदूर ने कहा, “तुमने पैसो की खनखनाहट नही सुनी अगर मिठाई की सुगंध लेना मिठाई खाने के बराबर है। तो पैसो की खनखनाहट सुनना पैसे लेने के बराबर है।” हा हा हा वह गर्व से सर ऊँचा किए कुछ देर वहाँ खड़ा रहा। फिर मुस्कराता हुआ चला गया। moral stories in hindi essay
Moral Of Story -जैसे को तैसा
डब्बू और नाई
डब्बू नाम का एक छोटा लड़का था। वह हमेशा होशियारी दिखाता था।
एक दिन उसे नाई से मजाक करने की सूझी वह सुबह सुबह नाई
की दुकान में पहुँचा। शाीशे के सामने कुर्सी पर बैठ गया नाई ने पूछा, “क्या बात है डब्बू?” डब्बू ने शान से कहा, “जरा मेरी दाढ़ी बना दो।”
नाई को डब्बू की शैतानी समझ में आ गई। उसने कहा, “हाँ जरूर बनाऊँगा। सरकार इसके बाद नाई ने डब्बू के कंधो पर तौलिया लपेट दिया। उसने ब्रश से उसके चेहरे पर झागदार साबुन लगाया फिर वह अपने अन्य वर्क में लग गया।
डब्बू ने कुछ देर तक इतंजार किया चेहरे पर साबुन पोते ज्यादा देर तक बैठे रहना। उसके लिए मुश्किल हो गया उसने नाई पर नाराज होते हुए कहा आखिर तुमने मुझे इस तरह क्यों बिठा रखा है।
यह सुनकर नाई हँस पड़ा। उसने शांति से जवाब दिया इसलिए कि अभी में तुम्हारी दाढ़ी उगने का इंतजार कर रहा हूँ। moral stories in hindi easy
Moral Of Story -दूसरे का मजाक उडानेवाला खुद मजाक का पात्र हो जाता है।
गधे की परछाई
गर्मियो के दिन थे। तेज धूप में एक यात्री को एक गाँव से दूसरे गाँव जाना था। दोनो गाँव के बीच एक निर्जन मैदान था यात्री ने किराए पर एक गधा ले लिया। गधा आलसी था। वह चलते चलते बार बार रूक जाता था। इसलिए गधे का मालिक उसके पीछे पीछे चल रहा था। जब गधा रूकता तो वह उसे डंडा मारता गधा फिर आगे चलने लगता था।
चलते चलते दोपहर हो गई। आराम करने के लिए वे रास्ते में रूक गए वहाँ आस पास कोई छाया नही थी।
इसलिए यात्री गधे की परछाई मे बैठ गया।
गर्मी के कारण गधे का मालिक भी बहुत थक गया था। वह भी गधे की परछाई में बैठना चाहता था। इसलिए उसने यात्री से कहा, “देखो भाई यह गधा मेरा है। इसलिए गधे की परछाई मेरी है। तुमने केवल गधे को किराए पर लिया है उसकी परछाई से हमारा कोई सौदा नही हुआ है। इसलिए मुझे गधे की परछाई में बैठने दो।”
यात्री ने कहा, “मैंने पूरे दिन के लिए गधे को किराए पर लिया है।
इसलिए पूरे दिन गधे की परछाई का उपयोग करने का भी मेरा ही अधिकार है। तुम गधे से उसकी परछाई को अलग नही कर सकते”
दोनो आदमी आपस में झगड़ने लगे फिर उनमे मारपीट शुरू हो गई।
इतने में गधा भााग खड़ा हुआ। वह अपने साथ अपनी परछाई भी ले गया। stories in hindi for class 5
Moral Of Story -छोटी छोटी बातो पर लड़ना अच्छा नही।
बादाम किसे मिला
एक दिन दो लड़के सड़क के किनारे किनारे जा रहे थे। तभी उन्हे जमीन पर गिरा हुआ एक बादाम दिखाई दिया। दोनो उस बादाम को लेने के लिए दौड़ पड़े। बादाम उनमे से एक लड़के के हाथ लगा। दूसरे लड़के ने कहा, “यह बादाम मेरा है। क्योंकि सबसे पहले मैने इसे देखा था।”
यह मेरा है। बादाम लेनेवाले लड़के ने कहा, “क्योंकी मैंने इसे उठाया था।” इतने मे वहाँ एक चलाक लंबा सा लड़का आ पहुँचा।
उसने दोनो लड़को से कहा, “बादाम मुझे दो। मैं तुम दोनो का झगड़ा निपटा देता हूँ।” लंबे लड़के ने बादाम ले लिया उसने बदाम को फोड़ डाला। उसके कठोर छिलके के दो टुकड़े कर दिये। छिलके का आधा हिस्सा एक लड़के को देकर उसने कहा, “लो यह आधा भाग तुम्हारा दूसरा भाग दूसरे लड़के के हाथ मे थमाकर बोला और यह भाग तुम्हारा। फिर लंबे लड़के ने बादाम की गिरी मुहँ मे डालते हुए कहा, “यह बाकी बचा हिस्सा मैं खा लेता हूँ। क्योंकी तुम्हारा झगड़ा निपटाने मे मैंने मदद की है। stories in hindi for class 7
Moral Of Story -दो के झगड़े मे तीसरे का फायदा।
Read More also